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॥ रत्नसार ॥
परिणामी छै. ते प्रणमन उत्पाद, व्यय रूप छै, ते जिवारे द्रव्य थी प्रणमन रूप पर्याय छै ते जघन्य, मध्यम, उत्कृष्ट स्वरूपै छ. तिहां षट् गुणी हानि वृद्धि नीपजै ते केम ? संख्यात गुणी वृद्धि, इम असंख्यात गुणी वृद्धि, अनंत गुणी वृद्धि. इम अनंत भागे हानि, असंख्यात भाग हानि, संख्यात भाग हानी हिवै असंख्यात भागे संख्यात, ते व्यय रूप प्रणमन नो स्वरूप. इम उत्पाद व्यय रूपें सिद्धि ने विर्षे पण इम द्रव्ये द्रव्यल प्रणामी प्रणमन श्रासरी षट् गुणी हानि वृद्धि संभवीए छै. पछै तो श्रीवीतराग देवें जे कह्यं ते सत्य. इति.
२०६.बंध ना च्यारप्रकार छै तेहनास्वामी बे,कषाय वसें तिवारे जीव प्रणमै जिवारे स्थितिबंध अने रस बंध करें, अने केवल योग प्रणमने आत्मा प्रणमै तिवारे प्रदेशबंध अने प्रकृतिबंध ए बे होय.
२०७.हिवै केवली भगवंत जे साता वेदनी योग