________________
(१५०)
॥ रत्नसार ॥
न होइ. ते अनन्ता अपर्याप्ता शरीर जुदा, तेहनो पण अायू २५६ दोसो छपन आवली नो होइ. पण अपर्याप्तो मरै इम न होइ, सर्वे क्षुल्लक भविया छै. ते माटे तथा पर्याप्ता नुं आयू एतलो, पणै तेतला माहे प्राप्ती पूरी करीने मरै. एहवो धारयो छै. तत्वं इति.
२००.व्यवहार राशियो जीव फरी सूक्ष्म निगोद मांहे जाइतो उत्कृष्टोअढ़ी परावर्त पुद्गल ताइ रहै.ते क्षेत्रपरावत्ति लीजिये. पण सूक्ष्म ने बादर बे मांहि थई ने तथा ते वली प्रथ्वी काय मांहे श्रावी, वली सूक्ष्म निगोद माहे जाय तो वली बीजा अढी पुद्गल परावर्त्त रहै. उत्कृष्टे वली ऊंचो श्रावी पृथ्वी पाणी मांहीं आवी वली सूक्ष्म निगोद मां जाय तो तिम जे उत्कृष्टो काल निगोद मध्ये इम तिर्यच नी गति बांध्या थी जाइ आबै तो उत्कृष्टे असंख्याता पुद्गल परावर्त्त रहै. ते असंख्याता केतले माने-आवलीने . असंख्यात में भागै जेतला समै असंख्याता थाइतेतला मानै, असंख्यात पुद्गल परावर्ते क्षेत्र थी जाणवा.