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॥ रत्नसार ॥
१९४ तथा सामायक च्यार प्रकारनां कह्याश्रुत सामायक १ समकित सामायक २ देश विरात सामयिक ३ सर्व विरति सामायक ४. ते मध्ये श्रुत सामायक नौ लाभ ते भव्य मिध्यात्वी ने होइ. अभव्य नें पण द्रव्य थी श्रुत नो लाभ थाइ १. तथा समकित सामायक ते सम्यकदृष्टी ने होइ २. पांचमै गुण ठाणै देश विरति सामायक नों लाभ होइ ३. सर्व विरति सामायक ते छठे गुण ठाणा थीं मुनि ने होइ ४ एतला मध्ये मुख्य समकित सामायक ते संवर रूप छै तेहनो स्वरूप कहिये छै. जिनवाणी प्रतीते ग्रहीने प्रत्यक्षे स्वरूप ने वेदे, गुण पर्याय नो विलंछन करे, भेद रूप रत्नत्रय नें श्राराधै, ते व्यवहार समकित कहिये. तथा गुण पर्याय अभेद रूप रत्न त्रये द्रव्य द्रव्यं रूपें निर्विकल्प समाधि पर्णे प्रणमै तेहनें निश्चय समकित कहिये. ते आागले व्यवहारे वस्तु समकित नें मेलवै. इति.
१९५. ज्ञान क्रियाभ्यां मोक्षः तत् कथं ? द्रव्य