________________
॥ रत्नसार ॥ (१४५) मित्तो हारेई नरो मुहुत्तेणं ॥ २ ॥ इत्यर्थ.
१९२.तथा श्रांबिल शब्द नो अर्थ आवश्यक टीका मध्ये कयूं छै. आय कहतां जे (श्रोसामण काढुओ होई ) ते मध्ये थी जिम अन्न काढे ते रीते काढिये ते श्राहार करवो. अने जे आम्ल जे खाटो रस (षट् विगय) ए बेइनें वजै ते आंबिल कहिये. इति अर्थ.
१९३. तथा नियाणकमा तेह ने व्रत नावै उदय जे इम कह छै. तत्रोत्तरं. तेमध्येनियाणा नव प्रकारै दसाश्रुत स्कंध मध्ये कह्याछै. तथा जे नियाणु समकित नु छै, अब्रत छै ए बे मध्ये जे समकित नो घात कारी नियाणो बांधे ते समकित पामवो दुर्लभ करे. तथा अविरति नुं भोग प्रतियुं नियाणो बांधइ ते भोग पूरा थए व्रत उदै आवै. जेम द्रोपदीने जीवे पूर्व भवे भोग प्रतियुं नियाणो बांध्यु हतुं, ने पांच भर्तारी थई भोग पूरा थया पछी व्रत उदय आव्यू. ते माटे एह ने अविरतिभासरि नियाणो कहिये, पण समकित नो नथी. इत्यर्थ.