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(१४०) ॥ रत्नसार ॥ भव्य १. तिम केतलाइ जीव मध्यम भव्य छै जिम ते परणी स्त्री ने बे बरसे पण नजीक पुत्र फल पामै.तेम जीव थोडा माहे भव सिद्धि वरे, मेघ कुमार नी परे २. केतलाइक जीव दुर भव्य छै. ते जिम परणी स्त्री ने घणे बरसै पूत्र फल पामै तिम ते जीव गौशाला नी परे, केतलाइक तथा अनंता पडवाइ नी परें घणे काले सिद्धि वरशे. इम तीन प्रकार ना भव्य जीव जाणवा.
____१८२. हिवै अभव्य नुं लक्षण कहै. जिम वंद्या । स्त्री घणे काल लग भरतार नो योग मिले, उपाय अनेक करै, पण पुत्र न पामै. तद्वत् अभव्य नुं जीव व्यवहारे चारित्रनी क्रिया आदरी नवमा ग्रेवेक सुधी जाय पण सिद्धि फल न पामै.
१८३. हिवै त्रिजो भव्या भव्य कीह्यो ते जीव ते द्रव्य लक्षणे दलवाईं भव्य पणे कर्म नी विशेष निवडताइ व्यवहार राशी मध्ये ऊंचा नहीं आवै, धर्म पाम्या नी सामग्री न मिलै. अत्र गाथा-(सामग्रीय भावो व्यव