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॥ रत्नसार ॥ (१३६) दृढास्थिकतादिरूपं प्रणम्यो छै तथा बचन योग ते जिन वाणी मांहि ते ज्ञान गुणे प्रणम्यो छै तथा काय योग्यते चारित्र गुणे. “जयंचरे जयं चिट्ठे जयं माशे जयं सुये इत्यादिक रूपे प्रणम्यों छे त्यारे जाव जीव तांइ सावद्य योग थी निवत्तिनें मुनि संजम योगे प्रणमै छै. इति.
१८०. तथा संसार मांहे जीव केतली प्रकारना छे ते एकसा अशीमो प्रश्नः- जीव ३ तीन प्रकार ना छै-भव्य १ अभव्य २ भव्याभव्य ३.
१८१. भव्यनु लक्षण कहे छै ते मध्ये भव्य जीव ३ तीन प्रकारना-एक निकट भव्य १ मध्य भव्य २ दुर भव्य ३. ते महे निकट भव्य जीव होय ते कीणनीपरे सद्दवा ते सौभाग्यवन्ती स्त्री वत् तिम निकट भव्य जीव होइ तत्काल स्त्री परणीने षट् मास माहे गर्भ रहै अने पुत्र नी प्राप्ति थाय, पुत्र रूप फल पामै. केतला जीव ते भवसिद्धि वरे ते निकट