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॥ रत्नसार ॥
( १.३७)
करै, तथा मुनि पो पामीनें पाछो पडै, मिथ्याले जाय तो पण आयु वर्जिनें साते कर्म नी उत्कृष्टी स्थिति बांधै तो नव हजार सागरे उणी एक कोडाकोडी सागरोपम नो उत्कृष्टो बंध करै, तथा उपशम श्रेणी थी पडीनें मिथ्यात्वे जाय ते पण आयु वर्जि ने सात कर्म नी उत्कृष्ट स्थिति बांधे तो नवहजार सागरो पम उणी एक कोडा कोडी सागरोपम नो उत्कृष्ट स्थिति बंधक इति भवन भानु केवली चरित्रे उक्तंच. तथा मार्गाभिमुखे जीव किवारे थाय ? जिवारे भव्यतानें उदै अकाम निर्जराई कर्म खपावतां बे पुद्गल परावर्त्त संसार रहै तिवारे प्रभुमार्ग सन्मुख आस्तिक पणै सन्मुखी भाव थाइ. तिहां थी संसार भव भ्रमण करतो जीव ऊंचो श्रावै तिवारे जीव मार्ग पतित पण डोढ परावर्त्त पुद्गल संसार रहै, तिवारे जिनोक्त मार्गे रुचि रूपे बैठो. वली कर्म नें उदै ते भाव थी पड्यो संसार मध्ये परिभ्रमण करतो एक परावर्त्त संसार पुद्गल रहै तिवारे जीव मार्गानुसारी पणुं पामै