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|| रत्नसार ॥
एहनी प्रणमन उपयोगै एकाग्रता रूप प्रणमै तिवारे एक सुख रूप सुखमई संपूर्ण धर्म पामै इति भाव. . १७७. तीन प्रकारे कर्म नी वक्तव्यता नो एक सौ सित्योतरमा प्रश्नः— तथा अनादि अशुद्धोपयोग रूपे विभावताई राग द्वेष मोह रूप आत्मा प्रणमै रे ते भाव कर्म १. तिण आकर्षण कर्म रूप वर्गणा बंध.. ते द्रव्य कर्म २. ते वर्गणा जिवारे पांच शरीरे प्रणमै तेह नोकर्म कहिये ३. इम तीन प्रकारे कर्म नी वक्तव्यता जाणवी इति भाव.
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१७८. हिवै एक सौ अठ्योतरमो प्रश्नः - तथा सम्यक्दृष्टी जीव मिथ्यात्व नें उदये समकित बमीनें पाछो मिथ्यात्व गुण ठाणे जाय तोही पण आयु वर्जि नें सात कर्म नी स्थिति पल्योपम ने श्रसंख्यातमें भागें उणी एक कोडा कोडी सागरोपम नो बन्ध करै. उत्कृष्टो बन्ध एन लो करै, देश विरती नें नव पल्योपम उणी एक कोडा कोडी सागरनो बंध उत्कृष्टो