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॥ रत्नसार ॥ (९१) चौथा पांचमा थीभाव चारित्र गुण प्रतें चढतो १३ मा १४ मा सुधी चढीने मरु देव्या नी परी, पुण्याढय राजा नी परे सिद्धि वरें. पाछो ते गुणस्थान फरसी ने पडै नहीं. तथा पांचमा चौथा वाला नं कषाय ४ च्यार तथा ८ आठ नो क्षयोपशम थयो..अने छटो सातमो गुणस्थान तो ३ तीजी चोकडी कषाय नी तेहनो क्षयोपशम थये आवै, ते माटे पांचमा ना निरमला अध्यवसाय शुभ ध्यान दशाइ उज्ज्वल होय पण गुण स्थान तो पांचमों कहीइ, पण छठो सातमो न कहीइ. गणस्थान ते कषाय ना क्षयोपशम ने हाथे छै अने अध्यवसाय ते निज परिणति ने हाथे छै,ते माटे विचारवो. ए भाव.
१२८. हिवै सम्यक्त मोहनी ना उदय किहां थकी होय ते एकसौ अठ्ठावीसमो प्रश्नः-तथा सम्यक्त मोहनी नो उदय क्षयोपशम समकितवाला ने होय, पण उपशम क्षायक ए बे समकितवाला ने समकित मोहनी नो उदय वेदन होय नहीं. क्षायक वेदक