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' (१०६) ॥ रत्नसार ॥ परिणमै, आपणै गुण नी सु तिहां शुद्ध पर्याय कहीजे. अधर्म द्रव्य असंख्यात प्रदेशी लोक प्रमाण अखंड आकृति तिहां शुद्ध व्यंजन पर्याय कहीजे. जिहां षट गुणी हानि वृद्धि करै तिहां शुद्ध अर्थ पर्याय कहीजे. अधर्म द्रव्य के स्थिति नो उत्पाद, गति नो व्यय, ध्रुव द्रव्य शास्वत.
. ५ अथ काल द्रव्य किं ? द्रव्य गुण वर्त्तना लक्षण, सर्व द्रव्याणं पर्याय असंख्यात अणु लोक प्रमाण शुद्ध पर्याय कहीजे. वर्तमान समै नो व्यय, अनागत समय नो उत्पाद, ध्रुव द्रव्य शास्वत. एक कालाणुनी द्रव्य आकृति तिहां शुद्ध व्यंजन पर्याय कहीजे. एवं काल द्रव्य.
६ अथ आकाश द्रव्य किं ? द्रव्य गुण अवकाश लक्षण पंच द्रव्याणां पर्याय लोकालोक प्रमाणं अनंत प्रदेशी, घटाकाश उत्पाद, घटाकाश व्यय, ध्रुव द्रव्य शास्वत, आकाश द्रव्य लोकालोक प्रमाण प्राकृति ते