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॥ रत्नसार ॥
आठमी क्रिया रुचि ८ मवर्मा संक्षेप रुचि ९ दशमी धर्म रुाचे १० ए दश रुचि ना नाम जाणवा. - अथ समकितना पाच भूषण कहै छैः-पहिलो उपमम भूषण जे विवेकी प्राणी प्राये कषाय करै नहीं अने जो करै तो पिण तुरत मन पाछो वालै १. बीजो आस्था भूषण. जे भगवंत ना वचन ऊपर शुद्ध प्रतीत राखै. प्रभ जेम आगमै प्राज्ञा कही तिम सधैं २. त्रीजो दया भाव भूषण. जे सर्व जीव आप सरीखा जाणी दया पालवी ३. चौथो संवेग भुषण. जे संसार सुं, धन सुं, शरीर सुं उदासीनता पणो ते संवेग पणो जाणवो ४. पांचमो निर्वेद भूषण.जे इंद्री ना सुख जीव अंनती वार पाम्या भोगव्या पिण ते दु:ख कारण छै एक चिदानंद मोक्षमई अतेन्द्री सुख ते आपणा करी जाणे ए निर्वेद जाणवो ५. एतले पांच भूषण समकित ना कह्या.
१६०. अथ त्रिण्य आत्मा नो स्वरूप लिख्यते