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॥ रत्नसार ॥ (१२९) ते माटै, बन्ध कर्म निवारे, ते व्रतादिक शुभ क्रियाई तथा पांच प्रकार नी सिझाइ उदय कर्म खपावै छै, निफल करै छै. तथा शुद्धोपयोगै आत्म ध्याने सत्ताई ज़े कर्म छै ते सोधे खपावै. इम मुनि आत्म गुणै निर्मल करी सिद्धि वरै छै. ए भाव. ___ १६४. तथा. आश्रवा ते परिश्रवा, जे शुद्धोपयोगै आत्म परिणामै जो आश्रव ना कारण होइ ते संवर रूप थाइ ते श्री श्राचारांगै सूत्रे चौथे अध्ययने द्वितीयोदेशके समकित ना अध्ययन मध्ये ए गाथा छै. तथा जीवाभिगम सूत्र मध्ये निर्लेप पदे श्रीगौतमे पूछयो छै जे, स्वामी पांच थावर ना जीव हमणां वर्त्तमाने समै जेतला छै ते निलेप थाशे गत्यांतरै जाशे ते एकसौ चौंसठमो प्रश्नः-तिवारे श्रीवीरे कद्दू एक वनस्पति काय विना पांच काय नाजीव निर्लेप थाशे. पृथवी,अप, तेउ, वाउ, त्रस काय ना जीव सर्व स्थानांतरे निर्लेप थाशे. पण वनस्पती काय निगोद गोलक ना जीव निर्लेप नथी. तत्र अथि अणंता जीवा