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॥ रत्नसार ॥ १५८. अथ धर्म पुण्य नो भेद ते एकसौ अठावनमो प्रश्नः-अथ केतलाइ जीव धर्म पुण्य ने एक मानै छै ते संदेह टालवा ने अर्थे धर्म पुण्य नो भेद लिखिये छै. अण पुण्ये १ पाण पुण्ये २ लेहण पुण्ये ३ सयण पुण्ये ४ वथ पुण्ये ५ मन पुण्ये ६ वयणं पुण्य ७ काय पुण्य ८ नमस्कार पुण्य ९ इति नव भेद पुण्य ना कह्या. १२ बार उपयोगमा २ बे अरूपी १० दस रूपी उपयोग, आत्म गुण माटें २ बे अरूपी छै. पांच समकितना नाम छै. ते मध्ये एक अरूपी च्यार रूपी प्रात्मा गुण माटे. पांच भेद अरूपी छै. सामायकादिक छ आवश्यक छै ते मध्ये सामायक १ चोवीसथो २ पडिकमणं ए त्रण आवश्यक संवर तत्व मध्ये छै. बाकी ३ त्रण निर्जरा तत्व मध्ये छइ. गाथा-सन्नगउ नियमा एगंमि भवंमि सिझई अवस्यं । विजयादि विमाणे द्वियं सखिज्ञ भवा ओ ना यव्वी ॥१॥) श्रावक जधन्य पदे केतला लाभे ? क्षेत्र पल्योपम ने असंख्यातमें भाग. आवश्यक नियुक्तो जंबू द्वीप