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|| रत्नसार ||
(९५)
जाण एहवा जे पंडित १. बीजे बोले शास्त्रार्थ विस्तार जाणवा २. त्रीजे बोलै वाणी माहि मिठास ३. चौथै बोलै प्रस्ताव अवसर ओलखै ४. पांचमु सांचो बोलै ५ छठ्ठो बोलै सांभलनार ना संदेह छेदे ६. सातमे बोलै बहुशास्त्र वेत्ता गीतार्थ उपयोगी होइ ७. आठमै अर्थ विस्तारी संवरी जाणै ८. नवमै बोले व्याकरण रहित कठिन भाषा अपशब्द न बोलै ९ दसमै बोले वाणीइं सभाने रिझावै १०. इग्यारमै बोलै रस स्वाद पामै ११. बारमै बोलै प्रश्नार्थ १२. तेरमै बोलै अहंकार रहित १३. चउदमै बोलै धर्म वंत संतोषबन्त १४. ए बोलना जाणते वक्ता जाणवा. इति.
हिवै श्रोता ना चउद १४ बोल लिखिये है. भक्तिवंत १ वाचालतें मीठा बोलै २ . गर्व रहित ३. सांभलवा ऊपर रुचि. ४. चंचलाई रहित एकाग्र चित्ते सांभलै अने धारै ५. पडवडो ते जेहवो सांभल्यो तेहवा प्रगट अक्षर कहै ६. प्रश्न जाणवा ७. घणो शास्त्र सांभल्यानो रहस्य जाणै ८. धर्म कार्ये आलस न होइ ९. धर्म