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॥ रत्नसार ॥ अर्थे तथा गुरु देव वांदवा अर्थे चालतां विराधना थाइ,ते उत्सर्ग.ते माटे अपवादै पचकखाण महा व्रत नो होइ. अने आचरण काइक कारण पडै उत्सर्ग मार्ग होइ. तथा वचनांतरे कोईक ग्रंथे उत्सर्ग ते निश्चय मार्ग कह्यो छै. अपवाद ते कोमल मार्ग व्यवहार मार्ग कह्यो छै. तेहनो स्वरूप आगुं लिख्यो छै. ए भाव, उत्सर्ग अपवाद मार्ग नी चर्चा घणी छ पण अत्र तो अल्प बुद्धि जेहवो जाणुं तेहवो संक्षेप थी लिख्यो छै. इति. ____१३१.हिवै कोइके प्रश्न पूछ्यो जे दीवा प्रमुख ना प्रकाश पडै छै ते दीवा मध्ये अग्नि ना जीव छै तेहना पर्याय, तरयोत रूप ते पुद्गल ना पर्याय ते एकसौ इकतीसमो प्रश्नः-तत्रोत्तरं. दीवा मध्ये जे अग्नि ना जीव छै ते मांहेज प्रणमी रह्या छै पण दाहक रूप पर्याय छै ते बाहर निकल नहीं,तथा दीवा ना प्रकाश रूप जे बाहिरै दीसै छै ते तो विश्रसा पुद्गल नी पर्याय छाया आकृति तेज द्युति इत्यादि बहू भेदें पुलद्ग