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॥ रत्नसार ॥
वाला ने तथा उपशमवेदकवाला ने ए सात माहिज वेदै, एकै पण एक समै रहै, तेहनां कालस्तोक माटै इहां गवेख्यूं नथी. ए भाव. __ १२९. हिवै समकित मोह नीप्रकृति को ने कहिये ते एकसौ उगणतीसमो प्रश्नः- क्षयोपशम उपशमवाला ने सत्ताइ छै. तेह नी सत्ताइ मूल छै. तेणैकरी कांक्षा मोहनी वेदै छै. कोईक जिन प्रणीत भाव सूक्ष्म पदार्थ मध्ये मुंझाय. शंका कंखा मोहनी साधू पण वेदै छै. ते माटे भगवतीजी सूत्र मध्ये पण कयूं छै ते विचारतां समकित मोहनी प्रकृति तेहनें कहिये ए भाव.
१३०.हिवै उत्सर्गअपवाद बेमार्ग कहिये छै तेहनोस्यों भावार्थ ते एकसौ तीसमो प्रश्नः-तत्रोत्तर उत्सर्गते व्यवहार मार्ग१.अपवाद ते निश्चय मार्ग२.यथा साधुनें पृथिवी कायादि षट्कायनी विराधि ना निषेधी छ,पण कदाचित कोई कारणे नदी उतरवी पडै तथा आहारादिक ने