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॥ रत्नसार ॥
वो होय तेहनो पांच समय थाय. एहवो भगवतीजी में कह्य छै.
१२६. हिवै अभिसंधी अनभिसंधि बे शब्द नो अर्थ कहै छै ते एकसौ छावीसमो प्रश्नः-हिवै अभि संधि ते उपयोग पूर्वक आत्म वीर्य होय तेहने कहिये. तथा अनभिसंधि ते अणाउपयोगात्मवीर्य होय तेह ने कहिये. ए भाव.
१२७. हिवै सम्यक् दृष्टी देशविरति ने गृहस्थवास छतां छठे गुणस्थान आवै ते एकसौसत्तावीसमो प्रश्नः-सम्यक् दृष्टी देशविरति गृहवास छतां कोई जाणशे जे चौथा पांचमा गुण स्थान वाला नो निर्मल अध्यवसायै ध्यान दसाइ शुभ योगै शुभ धर्म ध्यानै छठा सातमा गुणस्थान ना परिणाम प्रावै पछै ते कालांतरै अंतरमुहूर्त्तमात्र रही ने पछै मिटि जाइ, पोताना गुणस्थान माफक परणाम रहै एहq कहै ते असत्य मत कल्पना, पण कोई ग्रंथोक्त नहीं.तत्रोत्तरं