________________
(06)
|| रत्नसार ॥
सर्जन जे उपसर्ग, ते माटे. तथा परिसह ते पर जनित है. पर ना निमित्त थी कह्या ते सहवुं -- परि समंतात् सह्यते. इति उपसर्ग परिसहनो अर्थ विचारवो..
१२३. हिवै प्रमाण ४ च्यार आत्मा थी वीर किम मानिये ते एकसौ तेवीसमो प्रश्न कहै छैः प्रमाण ४ च्यार अनयोग सूत्रे कह्या छै:--
अथ
――
अनुमान प्रमाण १ उपमा प्रमाण २ आगम प्रमाण ३ प्रत्यक्ष प्रमाण ४. ते मध्ये आज श्रीवीर स्वामी प्रत्यक्ष प्रमाणे किम मिले ? ते थापना निक्षेपा थी मिलें. ते किम् ? समभाव शान्ति मुद्रा पर्यंकासन नो उत्पादे ने राग द्वेष नो विनास एहवी असल नी नकल जिन प्रतिमा ते देखीनें भाव थी वीर प्रत्यक्ष प्रमाणै मिलै. जिन प्रतिमा जिन सरीखी ते जिन प्रतिमा नी भक्ति जिन भावै कीधाना फल श्रावक ने महानिशीथ सुत्र में कहूं
(सिढो) इति वचनात् तिवारे जिन प्रतिमानी भक्ति कीधी तें जिन नी कीधी. इम कारण कार्योपचारात्. इम जिन नी थापना थी आज प्रत्यक्ष प्रमाणै
ང་
●