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॥ रत्नसार ॥ (५७) सु तुंबडी ऊपरे माटीना पड होई तिम तुंबी मृत्तिका नी परे मिल्यो छै. एह ना प्रदेश मांहि कोई कर्मवर्गणा एकी भाव नथी थई. तथा पर्यायार्थिक नयै श्रात्मा कर्म सु क्षिरनीर नि परै एकरूपै लौलीभूत थयो. तिहां चतुर्गति भ्रमण करै छै. ए भाव.
८४. हिवै पांच इंद्रिय नी सोल संज्ञा होई ते चौरासीमो प्रश्न लिखिये छैः--आहार संज्ञा १ भय संज्ञा २ मैथुन संज्ञा३ परिग्रह संज्ञा ४ क्रोध संज्ञा ५ मान संज्ञा ६माया संज्ञा लोभ संज्ञा ८ सुख संज्ञा ६ दुःख संज्ञा १० मोह संज्ञा ११ वीत गच्छा संज्ञा १२ शोक संज्ञा १३ धर्म संज्ञा १४ ओघ संज्ञा १५ लोक संज्ञा १६ ए मांहिली पहली १० संज्ञा ते एकेंद्री नें, बीजी संज्ञा बेंद्रियादिक ने १५ पंदर होइ. अने १६ संज्ञा पंचेंद्री सम्यक् दृष्टी ने होइ. ए भाव. .
८५. हिवै सोले संज्ञा जीव केह ने होइ ते पिचासीमो प्रश्नः- केतलाइ दोष जेह में मुख्यताई