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|| रत्नसार ॥
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अडतालीस प्रकृति सत्ताई होय. तथा उपशम समकित वालो जिन नाम कर्म नथी बांध्युं ते पडते त्रीजे गुण स्थान तथा बजै आवै अने उपशम भावै तो जिन नाम कर्म नो बंध नहीं. ते माटे बीजै त्रीजै गुण स्थानै सत्ताइ १४७ एकसो सैंतालीस प्रकृति होइ. तथा उपशम समकित च्यार वार आवै, भव मांहि ४ च्यारवार तो उपशम श्रेणी चढतां श्रावै. वली पाछो पड़ै एक वार, ते उपशम समकित पामतां गंठी भेद थाइ. ते समै आवै तथा पांचमी वार आवै ते पाछो पडी आठ मैं गुण स्थानै आवी में पछै क्षपक श्रेणीक मांडी केवल ज्ञान पांमी सिद्धि वरें. ए भाव.
१ ० ६.हिंवै क्षयोपशम समकितनुं लक्षण कहै है ते एकसौ छः मो प्रश्नः - ३ तीन मोहनी, ४ च्यार अन्तानुबंधी नी चोकड़ी, ए सात प्रकृति मांहि थी मिथ्या (मोहनी) ३ अने ४ अन्तानुबंधी चौकड़ी ए ७ सात प्रकृति मांहि थी जे कांइक दलिया छै, वर्गणा छै, ते मांहि थी जेतली वर्गणा ना दलिया ते प्रकृति ना उदै