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॥ रत्नसार ॥ करै छै, तिणै करि जीव कषाय छै ४. ए ४ च्यार संज्ञा मध्ये एक पहली वेदनी कर्म ना घर माहेनी छै. अने ३तीन संज्ञा पाछली ते मोहनी कर्म मांहेली छै. तथा
आहार संज्ञाइ शरीर परीरै हिंसा इम आहार संज्ञाइ हिंसा ना कर्म घणा बंधाइ तेह थी असाात वेदनी पूर पामै छै. तथा भय संज्ञाइ कल्पना नां कर्म नो योगै व्यक्ताव्यक्तरूप कर्म बंधाइ छ, तथा मैथुन संज्ञाइ पंचेंद्री ना विषय ना कर्म घणा, तथा परिग्रह संज्ञाइं कषाय ना कर्म तीब्र बंधाइ छै. इम ४ च्यार तीब्र भावै जे जीव ने प्रकर्ते ते अधोगति जाइ–संसार मध्ये जन्म मरण घणा करै. ए भाव. - तथा वली ए ४च्यार संज्ञा बीजी प्रकारे कहै छै. आहार शरीर थी हिंसा ते हिंसाइ, दुःख ते दुःखै. आरत ध्यान ते भारत ध्यानै अनन्ता संसार वधै एटले आहार संज्ञा मांहि अनंतो संसार छै. तथा भय संज्ञाइ कल्पना घणी बधै. कल्पनाइ करी जीवने राग द्वेषपरणति वधै. तेणे करी आठ कर्म निवड बांध. तेथी४