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॥ रत्नसार ॥
ते किहां ते अठ्याणमो प्रश्नः-अभय १ अकरण २ अहमेंद्र ३ कल्प ४ तुल्य ५, ए अवस्था साधवा सावधान छै. अभय ते अरिहंत नो ध्यान १. अकरण ते सिद्ध नो ध्यान२. अहमेंद्र ते आचार्य नो ध्यान ३. तुल्य ते उपाध्याय नो ध्यान ४. कल्प ते साधु नो ध्यान ५. ए समान अवस्थाइ ते पंच प्रस्थान मई श्राचार्य छैइ. ए भाव, अर्थ ध्यानमाला ग्रन्थे विस्तारै का छै.
९९. हिवै त्रीगँ गुणस्थान चढतां पडतां किम आवै ते नन्याणमो प्रश्नः-तत्रोत्तरं-चढतां पडतांबे प्रकारै श्रावै ते किम ? अनादि मिथ्यात्वी होइ तेह ने चढता नावै. ते प्रथम पहलां थी उपशम सम्यक्त पामै. गंठीभेद करै ते चोथे श्रावै. ते माटे अनादि मिथ्यात्वी ते पहिला थी चोथै आवै. ते माटे मिश्र गुण स्थानै नावै. तथा सादि मिथ्यात्वी सम्यक्त पामी ने पड्यो होइ ते पाछे क्षयोपशम सम्यक्त पामै, ते तीजुं गुण स्थानकै आवै तेह ने पडतांइ पण आवै. एभाव इति.