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॥ रत्नसार ॥
अने मिथ्यात्वी नें शुभ क्रिया रूप शुभोपयोग होय शुभाचार रूपै होय पिण निदान * अभिलाष सहित होई, ते माँटै अशुभ रूप कह्यो. अने सम्यक दृष्टीनें शुद्धोपयोग ना घर नो जे शुभोपयोग ते अनिदांन रूपे होई. ते माटै सम्यक्दृष्टी नें शुद्ध उपयोग, ते शुभ मिश्रित होई. ते माटै तरतम भेदे चौथा गुणस्थान थी मांडी बारमा तांई मिश्रोपयोग होई. तेरमा थी शुद्धोपयोगे पूर्ण पद होई. मिथ्यात्वी ने अशुद्धोपयोग होई.
ए भाव.
७२. हिवै बीजी रीते सम्यक दर्शन नो अर्थ कहै छै ते बोहत्तरमो प्रश्नः - ते सम्यक दर्शन यथार्थ रूपें प्रतिभास दर्शन जे रीते देखे है ते भेद लिखिये a. श्रीवीतराग देव ना वचन नी आकरी प्रतीत जिम कंद मूल जीव अनंता प्रतीत रूपें देखै छै तिम आत्मा अरूपी असंख्यात प्रदेशी श्रीजिनवचन नी चाकरी प्रतीत रूप देखै छै, तिम आत्मा एक तोए रीतें कहीइ १ * नीयाणा रूपे, इच्छकपणे.