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(४४) ॥ रत्नसार ॥ अशुद्धोपयोग नो मिटाविवो. तिहां ज्ञानोपयोगै भाव निर्जरा. ते किम ? जिहां राग द्वेष मोह प्रणमित नुं घटाडवो तिहां भाव निर्जरा. अने द्रव्य निर्जरा ते कर्म वर्गणानो घटाडवो. जे उदय आवै ते निर्जरे तेहवा पाछा बंधाइ नहीं. बंध अल्प अने निर्जरा घणी इम ज्ञान शक्ति वैराग्य बलै सम्यक् दृष्टी द्रव्य भाव निर्जरा करै छै. मिथ्यात्वी कर्म निर्जरा करै पण ते निर्जरा थी बंधाई. घणा मार्गानुसार ने पण कर्म निर्जरा पणे बांधै अल्प. पण वस्तु थकी सत्ता निर्जरा ते सम्यक् दृष्टी ने होई. ए भाव.
६८.हिवै जीवनुं गुण पर्यायनो अड़सठमो प्रश्नःते हिवै आत्मा ना असंख्यात प्रदेश छै. एकेक प्रदेशै अनंती शक्ति नै अनंतु ज्ञान छै. तथा एकेक प्रदेश अनंत पर्याय छै.इम द्रव्य गुण पर्याय नु थापवोजाणवो ते स्यादवाद मार्ग. ..
६९. हिवै द्रव्य नी शक्ति गुण शक्ति किहां छै ते