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(४२) ॥ रत्नसार ॥ धतां कर्म नी सत्ता सोधे, सकल कर्म थी मुकाई छइ. इम द्रव्य संवर ने भाव संवर नो स्वरूप जाणवो. इति.
६६. दर्शन तेथी जे देखवो ते शी रीते छै ते छांसठमो प्रश्नः-दर्शनते जे देखवो कहै छ तेहनो अर्थ यथा श्रुत लिखिये छ.छद्मस्त सम्यक् दृष्टी प्रत्यक्ष स्वरूप किम देखै ? इति प्रश्न. तत्रोत्तरं. परोक्ष प्रत्यक्ष अनुभव गोचर अनुमान प्रमाण प्रतीते प्रत्यक्ष देखै. ते किम ? पोताना परिणाम शुभाशुभ कर्म रूप राग द्वेष द्वार, बुद्धि पूर्वक ते परिणाम पोता ना देखै. ते परिणाम जीव द्रव्य थी ऊठै छै. श्या माटै ? ते जीव परिणामी द्रव्य छै, तेहना संगी जीव ने बुद्धि पूर्वक परिणाम दीठो. एणे अनुमानै आत्मा दीठो. किम् ? यथा-सूर्य बादल मांहि उग्यो छै, मेघ नी घटा घणी छै, तोही पण प्रकाश सूर्य नो छै ते अनुमान दिवस कहिये-सूर्य दीठो कहिये. इण दृष्टांते. तथा धूम्र दीठे अग्नि दीठी कहिये. इम जिन वचन नी प्रतीतै, परोक्ष प्रत्यक्ष आत्मा सम्यक् दृष्टी वीतराग वचन नी प्रतीते