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(५४) . ॥ रत्नसार ॥ पण अल्प बंध रूप छै, ते माटे स्वरूप हिंसा कहिये १. बीजी अनुबंध हिंसा ते राग द्वेष सहित जे प्रणमीने जे कोई मंदबुद्धि प्राणी छः कायना जीव ने हर्णै तेहवा तरतम अध्यवसाय महा कर्म ना बंध करै. तेहना अशुभ विपाकै उदय श्रावै ते अनुबंध हिंसा कहीइ २. वली एह ना भेद मध्ये द्रव्य हिंसा आवै तेह नो किंचित् अर्थ लिखिये छै. द्रव्य हिंसा अणा उपयोगै ३. भाव हिंसा तीब्र प्रणामै होई ४. बाह्यहिंसा ५ तथा योग हिंसा ६ तथा एटली स्वरूप हिंसा मांहि भिलै. तथा प्रणाम हिंसा ७ ते भाव हिंसा मांहि भिलै. इत्यादिक समझ लीजो. तथा एकही जीव ने हिंसा अल्प पण फल कालै दुःख विशेष पामै तेणे करी श्रद्धान विपरीत पणे दुःख घणो पामशे,जमाली नी परें.तथा एक जीव ते हिंसा घणी करै छ,पण फल कालै अल्प दुःख पामै ते शेण,दुष्टाध्यवसाय ने अभावै. उदय आव्यां ते निःफल करै दृढ प्रहारनी परै. इत्यादि चौभंगीओ अहिंसा अष्टक ग्रंथ मध्ये विस्तारै कयूं ते तथा ( एकस्याल्प