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॥ रत्नसार ॥ (५३) इंद्रिय ना विषय, ४ च्यार कषाय, पांच प्रमाद, तेहना त्याग बुद्धि होइ ते चारित्र गुण ने पमाड़े. तथा वस्तु गतै अनुभव लग्न तल्लय(तल्लीन)होय ते वीर्य गुण ने पमाडै. इम गुण ४च्यार ना हेतु धारवा. तथा एहीज गुण शरीर मध्ये जिहायै मुख्य तांई होय छै ते स्थानिक कहिये. दर्शन ते चक्षु, ज्ञान ते हृदय, चारित्र ते चरणे, तथा उछाह इच्छा वीर्य पाद होइ. एम ४ च्यार गुण स्थानिक समझ लेजो. ए भाव.
७९. हिवै हिंसा ना केतला भेद छै ते गुण्यासीमो प्रश्नः ते हिंसा केतली प्रकार नी छै तेहना भेद लिखिये छै. स्वरूप हिंसा १ अनुबंध हिंसा २द्रव्य हिंसा ३ भाव हिंसा ४ बाह्य हिंसा ५ परणाम हिंसा ६ जोग हिंसा ७ इत्यादिक घणा भेद छै ते मध्ये काईक नो अर्थ लिखिये छै. स्वरूप हिंसा ते साधु नें, तथा नदी उतरै छै पण मुख्य वर्ता हिंसाना परणाम नथी. तथा सम्यक् दृष्टी ने देवपूजा गुरुवंदणा साधुने आहार आपै तिहां इत्यादि कार्य स्वरूप हिंसासारखी दीसै छै,