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॥ रत्नसार ॥ (५१) नो अंशे प्रत्यक्ष थाइ २. हिवै त्रीजो उपमा प्रमाण, तिहां वस्तु ना अंशधर्मनें परिपूर्ण पदवी नी उपमा केहवी, जिम आज ने कालै सम्यक्त पाम्यो ते जाणी ई. केवल पाम्यो,यथोक्तं समुद्रवत, इम ओपमा प्रमाण कहींई. इम मानता आत्मा ने विनय गुण नी पुष्टी थाई ३.. चोथो प्रत्यक्ष प्रमाण.. जेहवो जिनेश्वर कह्यो तेहवो इहां पुण्य पाप ना फल प्रक्षत्य देखिये कै ते प्रत्यक्ष प्रमाणै छै. इम मानता आत्मा ने भव वैरागता गुणनी पुष्टि थाइ, विषय कषाय थकी निवः ४. एवी रीते ४ च्यार प्रमाणे
आत्मा ने गुण नीपजै. ए भाव. ___७७. हिवै तीन कर्म नो. सित्योत्तरमो प्रश्नःते कर्म ३ कह्या. एक तो द्रव्य कर्म ते आठ कर्म नी वर्गणा रूप छै १. तथा भावतै अशुद्धोपयोग विभाव रूप ते भाव कर्म २. तथा नोकर्म ते उदारिकादि पांच शरीर द्रव्य कर्म ने समीप रया माटै शरीर में पण नोकर्म कहिये ३. तथा तीन जाति ना कर्म रोग छै. तेह ना वैद्य जिनराज तथा गणधरादिक मुनि छै. तेहुनी