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॥ रत्नसार ॥
____ तथा ए रत्नत्रय धर्म थी जन्म जरा मरण ना भय टालै छ, ते किम ? सम्यक् दर्शन थी घणा जन्म मिटाव्या, सम्यक् ज्ञान थी जरा दुःख जे वेदना ते मिटावी. तथा सम्यक् चारित्र गुणै मरण भय टलै. इम ३ तीन गुणै जन्म जरा मरण भय मिटै. ए भाव.
७६. हिवै प्रमाण ४ चार ते जीव ने किम भोग पडै ते लिहोत्तरमो प्रश्नः- तथा ते प्रमाण च्यारजे रीते आत्मा ने भोग पड़े छै तेहनी विगत लिखिये छै. प्रथम तो आगम प्रमाणै षट् द्रव्य षट काय ना स्वरूपै जे वीतरामै भाष्या वचन प्रमाणे तहकीक करी मानवा, इहां संदेह तथा युक्तायुक्त न करवी. इम जीवाजीव ना स्वरूप श्रागम प्रमाणे प्रमाण तहत करी मानवा.ते मानता आत्मा ने प्रतीते सम्यक् धर्म नी पुष्टि थाई १. बीजं अनुमान प्रमाणे लक्ष्य लक्षणे निरधार थाई. यथा धूम दीठो अग्नि नो निर्झर थयो, तिम चेतना लक्षण अनुमानै करी लक्ष्य जो आत्मा तेह नो निर्धार थयो. इहां आत्मा ने वस्तुगते अनुभवीने वस्तु ना गुण गुणी