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(४८) ॥ रत्नसार ॥ प्रत्यक्ष ते चुमोत्तरमो प्रश्न कहै छै:-जिहां द्रव्य गुण पर्याय एकीभूत अभेद रत्नत्रय रूप मुनि प्रणमै जिहां, तिहां स्वरूप निज पद कंद प्रत्यक्ष देखै. इम ४ च्यार प्रकार सम्यक् दृष्टी श्रात्म स्वरूप देखै.
__ "छउमच्छाणं देसण पूर्व नाणं" इति सूत्रे उक्तं. यथा छद्मस्त नेआगल थी देखवो, पछै जाणवो,दर्शन ते सामान्यावबोध छै १. झात्वार रूप भास थाइ थोडो काल रही पछै ज्ञान मांहे मिले ते ज्ञान विशेषावबोध छै २.घणा काल रहै ते माटै,यथा गाथा “आत्म दर्शन जेणे कस्यो छै,तेणे मुध्यो भव भय कूपरे,"इम यसविजय जी ये पण कह्यो छै. यथा प्रवचन अंजण जो सदगुरु करै,तो देखै परम निधान जिणसर"एहवो लाभानंदजी ये पिण काछै. एरीते सम्यक् दृष्टी श्रात्म स्वरूपैं देखें पण साक्षात् करामलकवत असंख्यात प्रदेशी आत्मा अरूपी ते केवल दर्शन थई देखै. पण सम्यक् दृष्टी ते प्रतीतें अनुमान अनुभवै स्वरूपै देखै. इम कहे ए जिन वचननी प्रतीतें द्रव्य, स्वरूप दीठो. अनुमानै ते चेतना