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|| रत्नसार ॥
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तेहवा द्रव्य कर्म आवै तथा जिहां जेहवा हेतु तिहां तेहवी क्रिया. ते क्रियायै शुभ अशुभ कर्म नो बंध नीपजै तथाचोक्तं || दोहा || कर्त्ता परिणामी दरब, करम रूप परिणाम । किरिया (क्रिया) परजय की फिरनी, वस्तु एक त्रय नाम ॥ इति समय सार ग्रंथोक्तं.
हिवै जैन दर्शन ते उपयोगै तथा अक्रिय भावैं छै. जैन दर्शन श्रद्धान ते शुद्धोपयोगे है. ते शुद्ध उपयोग श्रात्म भावै छै, अक्रिय भावै छै. अने बीजा योगे क्रिया धर्म है. इति भाव.
६५. द्रव्य संवर भाव संवरनो पैंसठमो प्रश्नःतथा मन, बचन, काया ना योग प्रतियां जे कर्म छै ते, मुनी तप संयमै करी निर्जरै छंई. बीजा आवतां निरोध करें है. तथा अशुद्ध उपयोग प्रतिया जे कर्म ते रत्नत्रय रूप आत्मिक धर्म प्रणमीनें सत्ता सोधें कर्म थी मुकाई है. ए भाव. ते माटै मुनी, योग संवर आराधतां उद कर्म निवारें, तथा उपयोग संवर आरा