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॥ रत्नसार ॥
दसंग इत्यादि ). धर्म ना १० दस भेद-खंति, मद्दव, अज्जव, इत्यादि गाथा जे दस प्रकारे जती धर्म ते धर्म भेद. धर्म ना फल ते मोक्ष. इम धर्म आत्म स्वभाव जनित, अने पुण्य पाप ते कर्म जनित. पुण्य तो बंध रूप छै. पुण्य तो भोगवै छै पुण्य ते आश्रव रूप छै पुण्य मिथ्यादृष्टी ने होय. पुण्य ते क्षय छै. तथा धर्म ते सम्यक दृष्टी ने छै. धर्म संवर रूप छै. धर्म ते निर्जरा रूप छै. धर्म ते अक्षय रूप छै. धर्म नादस भेद छै.धर्म ना फल ते मोक्ष रूप छै.इम धर्म पुण्य नी भेदता छै.तथा धर्मपाप पुण्य वस्तु भिन्न, गति मिन्न, उपयोग भिन्न, अने फल भिन्न, ए रीते जाणवो.
४७. हिवै धर्म कर्म उपजतो छदमस्त किम जाणे ते सैंतालीसमो प्रश्नः-संकल्प विकल्प परिणामै जबताई जीव वतै छै तिहां कर्म नीपजै. जे जीव निर्विकल्प भावे प्रणामै तिहां धर्म नीपजै. एटले विकल्पै कर्म, निर्विकल्पै धर्म, ए भाव.
४८. हिवै स्वाभाविक त्रण गुण नो लक्षण कहै