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॥ रत्नसार ॥
प्रश्नः-तेह नी विगत. द्रव्य कर्म ज्ञानावरणी आदि देइनेकर्म पुद्गलीक ते १.भाव कर्म ते राग द्वेष आदि देईने आत्मा नो अशुद्ध परिणाम विभाबै परिणमैं ते भाव कर्म २. नोकर्म ते उदारिकादि पांच शरीर ते जाणवा ३. ए भाव.
५४. हिवै दया ना चार भेद छै ते. चोपनमो प्रश्नः-दया ते मिथ्यात्वदृष्टीने कही ते परहथ वेहचाणी राग द्वेषं हणाइ ते नथी जाणतो १. वा परदया तो विरति ने होई २. भाव दया ते सम्यकदृष्टी ने होइ ३. स्वदया क्षिपक श्रेणी चढतां होइ ४. इम चार भेदे जाणवी.
५५. हिवै मोक्षना ३ त्रण भेद ते पचपनमो प्रश्नः-भाव मोक्ष सम्यकदृष्टी ने होइ १. द्रव्य मोक्ष साधु ने होइ २. गुण मोक्ष केवली ने गुणस्थानै १३। १४ तेरमा चवदमा सुधी होइ. ३.
५६. हिवै चेतना केवी ते छप्पनमो प्रश्नः--