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॥ रत्नसार ||
(३३)
रत्नत्रय धर्म जाणवो. तथा पोताना गुण पर्याय रूप श्रात्मा ते आत्मपणै प्रणम्योजेणें धर्म प्ररूप्यो ते धर्म आदरवों ३. इम ३ ऋण भेद जाणवा.
हिवै जीव नी चेतना बे प्रकार नी छै ते पचासमो प्रश्नः — ते एक ज्ञान चेतना १. बीजी अज्ञान चेतना २. अज्ञान चेतना ना बे भेद - एक कर्म चेतना १ बीजी कर्म फल चेतना २. ते मध्ये कर्म चेतना-ते राग द्वेष रूपै प्रणमै ते कर्म चेतना तथा उदय श्रव्यां कर्म वेदै ते कर्मफल चेतना. ज्ञान चेतना मध्ये कोई भेद नहीं. ज्ञान चेतना प्रगटै ते कर्म चेतना तथा कर्मफल चेतना मिटै छै. ज्ञान चेतना सम्यक्त पाम्या पछै होई. अने मिथ्यात्वी ने अज्ञान चेतना, ए भाव.
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५१. हिवै त्रिकाल भाव कर्म निवारवानुं कारण ते इकावनमो प्रश्नः - ते हिवै त्रण्य कालै जे जीव पाप कर्म बांधै छै ते निवारवानो कौण हेतु ? इति प्रश्न. तत्रोत्तरं. गया काल ना पाप कर्म ते प्रतिक्रमण मिटै,