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(३६) ॥ रत्नसार ॥ ते चेतना तीन प्रकारनी कही.तिहां कर्म चेतना त्रस जीव ने १.कर्म फल चेतना एकेन्द्रियादिक प्रमुख ने २. ज्ञान चेतना सम्यकदृष्टी ने होइ ३. इति भाव.
५७. हिवै संसार मध्ये ३ तीन प्रकार ना जीव नो सत्तावनमो प्रश्न ते कहिये छै:-एक भवाभिनंदी ते मिथ्यादृष्टी जीव १. पुद्गलानंदी ते सम्यकदृष्टी जीव. जेह ने शुभाशुभ कर्म पुद्गल ना उदय आवै, रति वेदाइ, अंतर वेदीपणो जाइ, पण संसार मांहे आनन्दकारी न जाणै.ते माटै सम्यकति जीव पुद्गलानंदी कहिये, जेणै संसार ना पुद्गल नो अानन्दकते २. केवल आत्मा नो आनंद रत्न त्रय धमै वतै ते माटे मुनि आत्मानंदी जाणवा३. इति भाव. - ५८. हिवै सुगति कुगति नो अठावनमो प्रश्नः-ते शुभोपयोगैसुगति, अशुभोपयोगै कुगति. अशुभोपयोग संसार थाइ,शुद्धोपयोगै मुक्ति थाइ.तेह नो हेतु,जे माटे शुभ प्रकृति ने उदयै जीव ने शुभ योग थाइ, धर्म नो कारण शुभ क्रिया करै तेथी शुभ बांधैते शुभ गति.