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(३४) ॥ रत्नसार ॥ अने वर्तमान काल ना पाप कर्म आलोयणै मिटै, अने अनागत काल ना पाप कर्म पचक्खाणे टलै. ए भाव.
- ५२ .हिवै व्यवहार ना चार भेद नी विगत नो बावनमो प्रश्नः- अणउपचरित सदभूत व्यवहार प्रथम ते श्युं कहिये ? अनंतो ज्ञान, अनंतो दर्शन, अनंतो सुख, अनंतो वीर्य ए श्राद देई ने अनंत गुणात्मक शुद्धता ते१.बीजो उपचरित सद्भुत व्यवहार. तेहनो अर्थ क्षयोपशम ज्ञान, क्षयोपशम दर्शन, क्षयोपशम चारित्र ते२.त्रीजो अण उपचरित असदभत व्यवहार. एह नो अर्थ अनादि कर्म अने जीव ज्ञानावरणी श्रादि देई ने ८ कर्म जे द्रव्य कर्म ते३. चौथो उपचरित असद्भूत व्यवहार. तेहनो अर्थ बेटा बेटी, घर,द्विपद, चतुष्पद आदि देई ने दस विध परिग्रह ते४. ए रीते ४. चार व्यवहार नो अर्थ जाणवो. ___ ५३. हिवै ३ तीन प्रकार ना कर्म छै ते तिरपनमो