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॥ रत्नसार ॥
३ तीन तल्लीनतापणै न जोडै तेह नैं पापबंध अल्प
नीपजै, ते आलोयणै निंदै छूटै कर्मबंध नीपजै ते भोगवै छूटै जीव नें नीपजै पाप में कर्म अल्प
तथा शुधोपयोगै जे अत्र चौभंगी. कोई
१. कोई नें कर्म बहु ने पाप अल्प २. कोई नें पाप बहु नें कर्म घणा ३. कोई पापबंध कर्म बंध एकै नहीं ४. इम कर्मबंध पापबंध ना भेद जाणवा.
४५. तथा धर्म कर्म भर्म सेणे. ते पैंतालीसमो प्रश्नः -तत्रोत्तरं, धर्मते शुद्धोपयोगै, कर्मते क्रियाई, भर्मते मिध्यात्व मोहै.
४६. पुण्य धर्म एक छै किंवा जुदा है ते छियालीसमो प्रश्नः - पुण्य, पाप, धर्म, ए तीन वस्तु जुदी है. पुण्यना भेद - अण पुण्य १ पाण पुण्य २ लेण पुण्य ३ सयण पुण्य ४ वथ पुण्य ५ मन्न पुण्य ६ वय पुण्य ७ काय पुण्य ८ नमस्कार पुण्य है. ए नव भेद उपजवाना कह्या छै तेहना फल ४२ बेतालीस (साउच्च गोयमण, दुगइत्यादि ) तथा पाप ना अठारे पाप स्थान, ते १८ भेद. तेहना फल ८२ बयासी (नाणंतराय