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(२८) ॥ रत्नसार ॥ सम्यक्त कहिये. तथा पोताना गुण गुणी पर्याय अभेद रूपै रत्न त्रय रूपै निर्विकल्प समाधिपणे प्रणमै तेहनें निश्चय सम्यक्त कहिये. ये पूर्वोक्त वस्तु व्यवहार सम्यक्त ते निश्चय सम्यक्तनो कारण. जे निश्चय सम्यक्त ते केवल ज्ञान नो कारण. इति वीतराग समयसार ग्रंथे उक्तं.
४३. तथा नव तत्व षट् द्रव्य नो जे प्रास्तिक भावै श्रद्धान, तथा देव गुरु धर्म नु यथार्थ पणै सत्य श्रद्धानु बुद्धिपणा नो प्रकाश विशेशे तत्वातत्व नु नय भंग रूपैं, अनेकांत मार्ग विशेष रीते, आगलै परंपराये वस्तु व्यवहार सम्यक्त जे पूर्व कयूं ते रूप ने मेलवै. इति रहस्यं.
४४. हिवै धर्म कर्म पुण्य पाप जेह थी होय ते चूमालीसमो प्रश्नः-शुद्धोपयोगै जीव पोता ना द्रव्य गुण पर्याय सुं तदाकारै आत्म पणे प्रणमै ते धर्म. तथा राग द्वेष मय अशुद्धोपयोगै जिहां कर्मबंध नीपजै