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॥ रत्नसार ॥ (२७) ते इकतालीसमो प्रश्नः- ते निश्चय व्यवहार नये सम्यक दृष्टि में श्यो गुण करै ते कहै छै. निश्चय नय ते जीव द्रव्य वस्तु नें दृढ़ता आस्तिकता करण हेतु.अने व्यवहार नय तेजीवना पर्याय शुभाशुभ कर्म रूपै जे भरचा छै तेहने समारवानो हेतु छै. ते व्यवहार नय गुणकारी छै. तथा ते व्यवहार नै केडै उद्यम है. अने निश्चय नय केडै दृढ़ता स्थिरता छै.ए बे नय जिनेश्वरना भाष्या आत्म वस्तु ने समारवाना हेतु छै. ए जैन पद्धति स्यादवाद रूपै छै. एभाव.
४२. हिवै निश्चय व्यवहार सम्यक शी रीते छै ते बिआलीसमो प्रश्न, तेहनो स्वरूप कहै छैःश्रीजिनवाणी प्रतीतै ग्रहीने षट् द्रव्य ना यथार्थ पणे गुण पर्याय धारै. अनुभव प्रत्यक्ष स्वरूपने वेदै, तथा गुण पयार्य नो विलेछन करै. तथा पुद्गलादिक कर्म पर्याय सू तदाकार न प्रणमै, पांच इंद्रीना भोग विषै इष्टानिष्ट रूप न वेदै, पोताना स्वरूप भेद रत्नत्रय रूपै पाराधै, तेहने व्यवहार