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(२४) ॥ रत्नसार ॥ श्रद्धानी गति तत्वातत्ववीनी विवेचन रूपै छै ३. तीन गति, अमारा आत्मानी तो ए रीते दीसै छै. .
३६.हिवै द्रव्य गुण पर्याय श्या थी समरै ते छत्तीसमो प्रश्नः-द्रव्य गुण पर्याय जीव ना छै ते जे गुण थी समरै ते कहै छै. दर्शन, ज्ञान, चारित्र ए तीनथी समरै.
३७. हिवै जीव ना द्रव्य गुण पर्याय समरै ते किम ? ते सैंतीसमो प्रश्नः-आत्मा द्रव्य असंख्यात प्रदेशी तेहगें जिनवचन प्रतीतें, अनुमाने, अनुभवें परोक्ष प्रत्यक्षं जे भासन थयो प्रतीतात्मक धर्म जे आत्मद्रव्य दीठो छै. सम्यक् दर्शन गुण हेतु ते द्रव्य दर्शन, तथा प्रतीतात्मक धर्म अनन्त गुण नुं जाण पणो थयो ते गुण हेतु सम्यक ज्ञान जाणवो. तथा द्रव्य गुण रूपै प्रणमै जे पर्याय तेह नो हेतु स्वरूपाचरण चारित्र गुण हेतु. एटले जीवना पर्याय समरै ते चारित्र गुण हेतु. इम दर्शन द्रव्य,ज्ञानै गुण, चारित्रै पर्याय, समरै. इति भाव.