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रत्नसार ॥ (२३) इच्छाये अज्ञान पणो पुष्ट करै, अने मूर्छाये मिथ्यात्व पुष्ट करै. ए भाव.
३४. हिवै गुण पर्याय ना घातक नो चौतीसमो प्रश्नः-हिवै आठ कर्म मध्ये एक मोह नी२८ प्रकृति छ. ते मध्ये ३ प्रकृति मिथ्यात्व मोहनीय जाणवी, २५ प्रकृति चारित्र मोहनी, ते त्रणै भाग वेहचाये,मोहै, राग द्वेषै. तिहां मोह शब्दै मिथ्यात्व जाणवो. राग द्वेष शब्दै चारित्र मोह जाणवो. तेहनी २५ प्रकृति मध्ये १३ प्रकृति राग ना घरनी, १२ प्रकृति रागद्वेष ना घरनी, ते पूर्वे कही छै तिम जाणज्यो. ए अधिकार वीतराग समयसार ग्रंथे बंधाधिकारे कह्यू छै.
३५. हिवै शरीर परिणाम श्रद्धाननीगति प्रश्न पैंतीसमो तेः-शरीर तथा परिणाम तथा श्रद्धान ए तीननी गति जे रीते , ते रीत लिखिये छै. शरीर नी गति तो उदयीक भावनी वेदनी मध्ये छै, १. परिणाम गति विषय कषायनी प्रवृति मध्ये इष्टानिष्ट रूपै छै २.