________________
॥ रत्नसार ॥ (२१) संयम ३. चोथु मनसंयम. ते द्रव्य भाव रूप मन ना विकल्प संवस्या माटे ते मन संयम ४.तिहां द्रव्य मन ते पांच इंद्रिय ना विषय रूप, अने भाव मन ते व्यक्ताव्यक्त विकल्प रूप. ए च्यार प्रकारनो संयम साधु ने जाणवो. आत्मा स्वभावै प्रणमै तिहां सम्यक्त गुण नीपजै. तेहना फल ज्ञान अने आनन्द ए बे नीपजै. तथा देहादिक परभावें प्रणमै तिहां मिथ्यात्व. संसार नीपजै. तेह ना फल सुख दुःख ए बे नीपजै. एहवो जाणी आत्म स्वभावे प्रणमवू ए तात्पर्य.
२९.तथा जीवाभिगम सूत्रमध्ये उरपरि सर्पनी जाति समुर्छिम जेह नोशरीर जघन्य थी अांगुल नी असंख्यातमें भागें, उत्कृष्ट जोयण (जोजन) पहुत का छै. अने तिहांज असालीनो सर्प ने जाति चक्रवत्ति ना स्कंध वार मध्ये ऊपजै ते समुछिस नो शरीर जोजन १२ बार गें कह्यो छै. तेह नो आयु अंतर मुहूर्त कयो छै. बीजा ने९ नव जोयण ताई कहयो एह ने बार जोजनताई ते विचारवू. तथा समुच्छम उरपरि नो आयु ५३ त्रेपन