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(१४) ॥ रत्नसार ॥ एणी रीते ४ प्रकार धर्म ना कह्या ते मध्ये एके दुहवा ईनही ४ प्रकारै धर्म जे प्राणी यथा अर्थ स्यादवाद रीते पामै. ते (सूलंभवोधिओथई वहिलो सिद्धि वरै)ए च्यार रीते धर्म ना ४ प्रकार जाणवा. तथा जे प्राणी क्रिया विधि आदरै, उपयोग शुद्ध राखे, ते प्राणी वेहलो भव घटावै, वेहलोही मुक्ति जाय. ए भाव.
१८. हिवै कर्म ३ प्रकार नां छै ते अठार मो प्रश्न कहिये छैः-हिवै कर्म जाते ३ प्रकार ना. तिहां द्रव्य कर्म ते आठ कर्म नी वर्गणा १. नोकर्म ते पांच शरीर २ भाव कर्म ते राग द्वेष परणीति ३. तिहां द्रव्य कर्म, नोकर्म ते पांच शरीर पुद्गलकि पुद्गला श्रित छै. भाव कर्म ते आत्माश्रित छै. पहिला बे कर्म ते कर्म विनाशिक छै. भाव कर्म ते अनादि अविनाशी छै अात्म प्रवृत्ति या माटै, तथा हर्षोल्लास तें भाव कर्माश्रित छै. इम द्रव्य संग्रह नी टीका मध्ये कह्यो छै.
१९. हिवै नव पदार्थ ना भावार्थ नो उगणीसमो