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(१६) ॥ रत्नसार ॥ समरण संभारतां, तन्मय प्रणमतां जीव ने श्यो गुण नीपजे ? शास्त्रार्थ सूत्राभ्यास सुलभ पामै, अध्यापक शक्ति भवांतरै प्रगटै ४. ( साधु ) पद ध्यान करतां मुक्ति मार्ग नो साधन सुगम, सुलभ, बोधि पामै; चारित्र सुलभ पामी, गज सुकुमाल नी परें, तुरत मुक्ति पद पामै ५. (दर्शन) पद आराधतो सम्यक्त निर्मल करै ६. ( ज्ञान ) पद आराधतो बोध निर्मल करैः (चारित्र) पद आराधतो निरतीचारपणे सामायकादि पंच चारित्र पंच महा ब्रत सुलभ पामै ८.(तप) पद आराधतो इच्छा निरोध थाय, अणीच्छक गुण पामै ९. ए नव पद नो भावार्थ संक्षेप थी जाणवो. .. २१. हिवै उदय बंधनूं इक्कीसमो प्रश्न कहै छै. ते नो स्वरूप लिखिये कै. बांध्या कर्म उदय श्रावै; द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव पामी ने जैहवै रसै आवै तेहवा प्रदेशै तथा विपाकै भोगवे. ते भोगवतां जेहवा वेदे तेहवा नवा बीजा बंधाय. तिहां वेद, ते सम भावै वेदै, तिहां निर्जरा थाइ. तथा वेदतां जे विषम राग द्वेष भावै वेदै तो