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॥ रत्नसार ॥ १६.हिवै सिझई बुझई नो सोलमो प्रश्नः-ते सिझई १ बुझई २ मुच्चई ३ परिनिव्वाई ४ ए च्यार पद नो अर्थ यथा श्रुत अनुभव छै ते रीतै लिखिये छै. कर्म नो जे अोछो थावो, जे अंशे घटाड़वो ते सिझई १. तिवार पछी वस्तु नूं ज्ञान थy ते बुझई २. ते कर्म सत्ता थी क्षय थy फिरि बंध क्यारे नावे फिरी न बंधाय ते मुचई ३. आत्मा के स्वभाव ठरण पाम्या ते परिनिव्वई. ते शीतलीभूत थया जन्म जरा मरण ना भय निवास्या ते (सन दुखाणमंतं करेई) ए भाव थी चौथा गुण स्थान थी जे अंशे थाइ ते तरतम भेदे कहवा. अने चवंद मानें अंते ते सर्वगे कहवा. एह नो अर्थ प्रायः इम ऊपजे छै. तो श्री जिनेंद्रे प्रकाश्यु ते सत्य तथा सर्व कार्य सध्या माटै सिद्धे १. आत्म बोध संपूर्ण ज्ञान स्वरूप थया माटै बुद्धे २. सर्व कर्म थी मुकाणा माटे मुत्तें३. शीतलीभूत थया माटे पडिनिबुडे ४.संसार नो अंत करया माटे, अंडगडे ए पाठ नो अर्थ ए रीतें अनुयोग हारे, ए भाव छै.