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॥ रत्नसार ॥ (8) तेहनें निवर्त्या तेहनें नव निधि निपनी ए मुनि श्रासरी.
११. हिवै पांच इंद्री ना विकार मिटै कीहा गुण निर्मलता थाय ते इग्यारमूं प्रश्न ते कहै छै:-चक्षु इंद्रिय नो विकार मिटै, हृदय ज्ञान चक्षु निर्मलता नीपजे १. श्रोतेंद्रिय नो विकार मिटै, जिन वचन , श्रवण प्रीति प्रतीत रूपे थायर.जिव्हा इंद्रिय नो विकार गये आत्मिक अनुभव रस स्वाद पामै ३. नासिका नो विकार गये आत्म गुण नी सुवासना पामै ४. स्पर्श इंद्रिय नो विकार गये आत्म प्रदेश ना स्वभाव रूप स्पर्शन थाय ५. क्रोध गए समता गुण प्रगटै ६. मान गये मार्दव गुण प्रगटै ७. माया गये आर्जव गुण प्रगटै ८. लोभ गये संतोष गुण प्रगटै है. ए रीते पण जीव ने ए गुण प्रगटै. ए भाव. .
१२. हिवै जीव में मिथ्यात्व ४ प्रकार नो ते १२बारमो प्रश्न कहै छैः-प्रदेश मिथ्यात्व १ परणाम मिथ्यात्व २परूपणा मिथ्यात्व ३ प्रवर्तन मिथ्यात्व ४. व्यवहार समकित पामै तिवारे परूपणाप्रवर्तन र मिथ्या