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॥ रत्नसार ॥ .. चुगल, चौर, छलग्राही, अधर्मी, अधर्म, अविनीत, अधिक बोला, अणाचारी, अन्यायी, अधीर, अमोही, निःश्नेही, कुलक्षणा, कुबोला, कुपात्र, कूड़ा बोला, कुशीलीया, कुसामनि, कुलखंपणा, भंडा, भुच्च एहवा पुरुष नो संग न कीजे. ॥ अथ धारवा रूप छुट्टा बोल लिख्यते ॥
१ जीव धर्म किम पामै ? गुरु कहै छै—जीव ३ तीन प्रकारै धर्म पामै. गुरु ना उपदेश थी १ तथा अभ्यास थी २ तथा वैराग्य थी ३ एहवो उपदेशसार पदमानन्दी २५ ( पच्चीसी) मध्ये कह्यो छै.
२ तथा अभ्यास ४ प्रकार ना कह्या छै ते बीजो प्रश्न-सत्र अभ्यास १ अर्थाभ्यास २ वस्तु नो अभ्यास ३अनुभवाभ्यास ४. ए चार अभ्यास पक्वताये वस्तु पामै.
जीव ने पाप उपजै हिंसाइ, पुण्य ऊपजै ते दयाइ. तथा छःकाय जीव ने हणवानो परिणाम थाइ तिहां पाप नीपजै. ते छःकाय ना जीव. ने त्रिकरण