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प्रस्तावना
शब्दाम्भोजभास्कर नामका ही न्यास हो । यदि ऐसा है तो प्रभाचन्द्रकी उत्तरावधि ई० १०७५ मानी जा सकती है। शिमोगा जिलेके शिलालेख नं० ४६ से ज्ञात होता है कि पूज्यपादने भी जैनेन्द्रन्यासकी रचना की थी। यदि श्रुतकीर्तिने न्यास पदसे पूज्यपादकृत न्यासका निर्देश किया है तब 'टीकामाल' शब्दसे सूचित होनेवाली टीकाकी मालामें तो प्रभाचन्द्रकृत शब्दाम्भोजभास्करको पिरोया ही जा सकता है । इस तरह प्रभाचन्द्रके पूर्ववर्ती और उत्तरवर्ती उल्लेखों के आधारसे हम प्रभाचन्द्रका समय सन् ९८० से १०६५ तक निश्चित कर सकते हैं। इन्हीं उल्लेखोंके प्रकाशमें जब हम प्रमेयकमलमार्तण्डके 'श्री भोजदेवराज्ये' आदि प्रशस्तिलेख तथा न्यायकुमुदचन्द्रके 'श्री जयसिंहदेवराज्ये' आदि प्रशस्तिलेखको देखते हैं तो वे अत्यन्त प्रामाणिक मालूम होते हैं। उन्हें किसी टीका टिप्पणकारका या किसी अन्य व्यक्तिकी करतूत कहकर नहीं टाला जा सकता । __ उपर्युक्त विवेचनसे प्रभाचन्द्र के समयकी पूर्वावधि और उत्तरावधि करीब करीब भोजदेव और जयसिंह देवके समय तक ही आती है। अतः प्रमेयकमलमार्तण्ड और न्यायकुमुदचन्द्रमें पाए जाने वाले प्रशस्ति लेखोंकी प्रामाणिकता और प्रभाचन्द्रकर्तृतामें सन्देहको कोई स्थान नहीं रहता। इसलिए प्रभाचन्द्रका समय ई० ९८० से १०६५ तक माननेमें कोई बाधा नहीं है।
६.३. प्रभाचन्द्र के ग्रन्थ
आ० प्रभाचन्द्रके जितने ग्रन्थोंका अभी तक अन्वेषण किया गया है उनमें कुछ स्वतन्त्र ग्रन्थ हैं तथा कुछ व्याख्यात्मक । उनके प्रमेयकमलमार्तण्ड-(परीक्षामुखव्याख्या), न्यायकुमुदचन्द्र (लघीयस्त्रय व्याख्या), तत्त्वार्थवृत्तिपदविवरण (सर्वार्थसिद्धि व्याख्या), और शाकटायनन्यास (शाकटायनव्याकरणव्याख्या) इन चार ग्रन्थों का परिचय न्यायकुमुदचन्द्रके प्रथमभागकी प्रस्तावनामें दिया जा चुका
* प्रमेयकमलमार्तण्डके प्रथमसंस्करणके सम्पादक पं० बंशीधरजी शास्त्री सोलापुरने उक्त संस्करण के उपोद्धातमें श्रीभोजदेवराज्ये प्रशस्तिके अनुसार प्रभाचन्द्रका समय ईसाकी ग्यारहवीं शताब्दी सूचित किया है। और आपने इसके समर्थन के लिए 'नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्तीकी गाथाओंका प्रमेयकमलमार्तण्ड में उद्धत होना' यह प्रमाण उपस्थित किया है । पर आपका यह प्रमाण अभ्रान्त नहीं है। प्रमेयकमलमार्तण्डमें 'विग्गहगइमावण्णा' और 'लोयायासपऐसे' गाथाएँ उद्धत हैं। पर ये गाथाएँ नेमिचन्द्रकृत नहीं हैं । पहिली गाथा धवलाटीका (रचनाकाल ई० ८१६) में उद्धृत है
और उमास्वातिकृत श्रावकप्रशप्तिमें भी पाई जाती है । दूसरी गाथा पूज्यपाद (ई. ६वीं) कृत सर्वार्थसिद्धिमें उद्धत है । अतः इन प्राचीन गाथाओंको नेमिचन्द्रकृत नहीं माना जा सकता। अवश्य ही इन्हें नेमिचन्द्र ने जीवकाण्ड और द्रव्यसंग्रहमें संगृहीत किया है। अतः इन गाथाओंका उद्धत होना ही प्रभाचन्द्रके समयको ११ वीं सदी नहीं साध सकता।
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