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१५. अक्कोस ( आक्रोश ) आस्यते यतस्स आक्रोशः ।
जिससे भर्त्सना की जाती है, वह आक्रोश है ।
१६. अक्ख (अक्ष)
अश्नुत इत्यक्षः ।
अश्नीते नवनीतादिकमित्यक्षः ।
धुरा है ।
१७. अक्ख (अक्ष)
जो नवनीत आदि चिकने पदार्थों से व्याप्त होता है, वह अक्ष /
असु वावण' धाऊओ अक्खो जीवो उ भण्णए णियमा । जं वावयए भावे णाणेणं तेण अक्खो त्ति ॥
१८. अक्खर (अक्षर)
न खरतित्ति अक्खरं ।
निरुक्त कोश
अस भोयणम्मि अहवा सव्वदव्वाणि भोगमेतस्स । आगच्छंती जम्हा पालेइ य तेण अक्खोत्ति | ( जीतभा १२, १३ )
जो ज्ञानात्मा से अर्थों को जान लेता है, वह अक्ष / जीव है । जो सब द्रव्यों का भोग करता है, वह अक्ष है ।
(उच्च् पृ ७० )
( उच्च पृ १३५)
( उशाटी प २४७ )
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जो क्षरित / नष्ट नहीं होता, वह अक्षर है ।
अर्थात् क्षरति न च क्षीयते इत्यक्षरम् । ( आवहाटी १ पृ१६ ) जो अर्थों का क्षरण / प्रकटन करता है, पर स्वयं क्षीण नहीं होता, वह अक्षर है ।
( वृभा ४३ )
१. असु - व्याप्तौ ।
२. अशश् - भोजने ।
३. एत्थक्खर सद्दो संचलणे वट्टइ, अकारो पडिसेहे, जम्हा णोक्खरति अओ अक्खरं । (आवचू १ पृ २५ )
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