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महाबंधे ट्ठिदिबंधाहियारे १२. देवगदि० उक्क हिदिबं० पंचिंदि०-तेजा०-क०-समचदु०-वएण०४-अगु४-पसत्यवि०-तस०४-सुभग-सुस्सर-आदें-णिमि० णि• बं० । णिय. अणु० संखेंज्जगुणहीणं० । वेउवि०-वेउवि अंगो० णि बं० अणु संखेजदिगुणहीणं । देवाणु० णिय० बं० । तं तु० । थिराथिर-सुभासुभ-जस०-अजस० सिया० णि बं० । णि अणु० संखेजगुणहीणं ० । एवं देवाणु० ।
६३. एइंदि० उक्क हिदिबं० तिरिक्खगदि-ओरालि०-तेजा०-क-हुंड-वरुण. ४-तिरिक्खाणु०-अगु०-उप०-दूभग-अणादे-णिमि० णि० बं० । णि अणु० संखेज्जगुणहीणं० । पर-उस्सा-उज्जो०-बादर-पज्जत्त-पत्ते-थिराथिर-सुभासुभ-जस-अजस सिया बं० । यदि बं० णिय. अणु० संखेज्जगुणहीणं । आदाव-मुहुमादितिएिण० सिया० । तं तु० । थावर णिय० । तं तु० । एवं थावर० ।
९२. देवगतिकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाला जीव पञ्चेन्द्रिय जाति, तैजस शरीर, कार्मण शरीर, समचतुरस्र संस्थान, वर्णचतुष्क, आगुरुलघु चतुष्क, प्रशस्त विहायोगति, त्रस चतुष्क, सुभग, सुखर, प्रादेय और निर्माण इन प्रकृतियोंका नियमसे बन्धक होता है । जो नियमसे अनुत्कृष्ट संख्यातगुणहीन स्थितिका बन्धक होता है। वैक्रियिक शरीर और वैक्रियिक आङ्गोपाङ्गका नियमसे बन्धक होता है जो नियमसे अनुत्कृष्ट संख्यात गुणहीन स्थितिका बन्धक होता है। देवगत्यानुपूर्वीका नियमसे बन्धक होता है। किन्तु वह उत्कृष्ट स्थितिका भी बन्धक होता है और अनुत्कृष्ट स्थितिका भी बन्धक होता है। यदि अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्धक होता है तो उत्कृष्टकी अपेक्षा अनुत्कृष्ट एक समय न्यूनसे लेकर पल्यका असंख्यातवाँ भाग न्यून तक स्थितिका बन्धक होता है। स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, यश-कीर्ति इनका कदाचित् बन्धक होता है और कदाचित् अबन्धक होता है। यदि बन्धक होता है तो अनुत्कृष्ट संख्यात गुणहीन स्थितिका बन्धक होता है। इसी प्रकार देवगत्यानुपूर्वीके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका आश्रय लेकर सन्निकर्ष जानना चाहिए।
९३. एकेन्द्रिय जाति की उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाला जीव तिर्यञ्चगति, औदारिक शरीर, तैजस शरीर, कार्मण शरीर, हुण्ड संस्थान, वर्ण चतुष्क, तिर्यञ्चगत्यानपूर्वी, अगुरुलघु, उपघात, दुर्भग, अनादेय और निर्माण इन प्रकृतियोंका नियमसे बन्धक होता है जो नियमसे अनुत्कुष्ट संख्यातगुण हीन स्थितिका बन्धक होता है। परघात, उच्छ्वास, उद्योत, बादर, पर्याप्त, प्रत्येक शरीर, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, यश-कीर्ति और अयशःकीर्ति इन प्रकृतियोंका कदाचित् बन्धक होता है और कदाचित् अबन्धक होता है। यदि बन्धक होता है तो नियमसे अनुत्कृष्ट संख्यातगुणहीन स्थितिका बन्धक होता है। आतप और सूक्ष्म आदि तीनका कदाचित् बन्धक होता है और कदाचित् अबन्धक होता है। यदि बन्धक होता है तो उत्कृष्ट स्थितिका भी बन्धक होता है और अनुत्कृष्ट स्थितिका भी बन्धक होता है। यदि अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्धक होता है तो नियमसे अनुत्कृष्ट एक समय न्यूनसे लेकर पल्यका असंख्यातवाँ भाग न्यून तक स्थितिका बन्धक होता है । स्थावर प्रकृतिका नियमसे बन्धक होता है। किन्तु वह उत्कृष्ट स्थितिका भी बन्धक होता है और अनुत्कृष्ट स्थितिका भी बन्धक होता है। यदि अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्धक होता है तो नियमसे उत्कृष्टकी अपेक्षा अनुत्कृष्ट एक समय न्यूनसे लेकर पल्यका असंख्यातवाँ भाग न्यून तक स्थितिका बन्धक होता है। इसी प्रकार स्थावर प्रकृतिके उत्कृष्ट स्थितिबन्धकी अपेक्षा सन्निकर्ष
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